
खालीपन हे मुज ह्रदय में,
कुछ भी स्पष्ट नहीं है मन में,
दूविदा हे इस चिट मे,
कुछ कहने के लिए,
जब भी खुलते हैं होठ,
शब्द फरियाद लेकर,
आते हैं मेरे मन में,
पीछे मुड़ न सकूं
एसी सोच के उपवन में,
कुछ भी,
बदलाव नहीं आया,
गर्मी, सर्दी, बरसात की मौसम में,
हे कोई,
जिसने मधुर अमरुत देखा हो?
ये आग उगलती दुनिया में,
ढाई शब्द,
प्रेम की आड़ में,
जाने क्यो लोग,
भर लेते हैं,
सारी वेदना अपने दिल में?
यारो,
कड़वी बात लगे तो,
माफ करना मुजे,
ये तो,
यू ही,
ख्याल आया,
मेरे दिल में!
डॉ गुलाब चंद पटेल
अध्यक्ष गांधी नगर साहित्य सेवा संस्था गुजरात