खुशियों के पके फलकोशिशें तो बहुत कीकि तोड़ के खा लूंचांदनी और कच्ची धूप मेंपके खुशियों के फल, जो उगे हैंबूढ़े लम्हों के पेड़ों पे।खट्टी-मीठी यादों की सीढियां बना करचढ़ता रहा कदम-दर-कदम…हर कदम लेकिन चढ़ते हुएमैं देख रहा थाउस पेड़ की मुस्कान को भीजिसकी जड़ों में दफ्न थीमेरे पिता की खुशियाँ….उनके संस्कारों ने ही तोउसे जमीं से जोड़ रखा था।हर डाली जैसेअपनी बाहें फैला केमुझे बुला रही थी…और मैं खुशियों के पके फलतोड़ करख़ामोशी से चल पड़ाअपने बच्चों को खिलाने।- चंद्रेश कुमार छतलानी3 प 46, प्रभात नगर, सेक्टर-5, हिरण मगरी, उदयपुर – 313002, राजस्थान9928544749dr.chandresh.chhatlani@gmail.com

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