खूँटी टाँग आँख का पानी, कुर्सी गए विराज।
ओढ़ी चादर, ‘तुंबनखाँ’ ने, तजी लोक की लाज।।
लेकर सबको आगे-आगे, करने चले शिकार।
सुन दहाड़ अब उसी शेर से, हाथ मिलाया आज।।
पलटी मारी मगरमच्छ ने, पीछे सबको छोड़।
टुकुर-टुकुर रह गया देखता, सारा मत्स्य-समाज।।
पीट ढिंढोरा जोर-शोर से खड़ा किया गठजोड़।
पल भर में उस जोड़-तोड़ पर स्वयं गिरा दी गाज।।
देख लिया अब नहीं मिलेगा, वह खट्टा अंगूर।
बनी रहे आधी ही सोचा, तज साजी का साज।।
चिंता क्या, क्या कौन कहेगा, क्या कर लेगा कौन?
किसी हाल में नहीं छोड़ना अब सत्ता का ताज।।
—-डाॅ०अनिल गहलौत