रात भर करवटें, वो बदलती रही।
सिलवटें चादरें उसकी कहती रहीं।।
यादों में,रात में उसकी मैं ही मैं था।
हिचकियां,रातभर, ये कहती रही।।
रात भर करवटें, वो बदलती रही।
जब समय था, गलतियां,उसने की।
आज चाहत का इकरार करने चली।।
रात भर करवटें, वो बदलती रही।
तीर,तरकश से, उसके निकल गया।
दिल में अफसोस ले वो मचलती रही।।
रात भर करवटें, वो बदलती रही।
मेरी चाहत को दिल में, लिए वो रही।
और किसी की वो चाहत बनती रही।।
रात भर करवटें, वो बदलती रही।
रात भर करवटें, वो बदलती रही।
सिलवटें,चादरें उसकी कहती रहीं।।
हिमांशु पाठक
हल्द्वानी
नैनीताल
उत्तराखंड