गिड़गिड़ाएगा अत्याचार।
फूल यदि बन जाए अंगार।।
लिया कंधे पर सूरज लाद।
किया हमने तम का निस्तार।।
राम पर है अब जनता मुग्ध।
रावणों पर है कड़ा प्रहार।।
नकद अच्छी है होती है ‘एक’।
नही होती ‘सौ’ भली उधार।।
झूठ के दिखते उखड़ते पैर।
सत्य जब उठ पड़ता ललकार।।
कभी सेवा का व्रत थी धन्य।
हुई अब राजनीति व्यापार।।
कुशल डोली की है अब नहीं।
लुटेरे दिखते बने कहार।।
खुल चुकी है अब सारी पोल।
व्यर्थ है झूठा अधम प्रचार।।
—डाॅ०अनिल गहलौत