गुमशुदगी सारी उम्र बरकरार रहती है-“निरेन कुमार सचदेवा”

मेरी गुमशुदगी कि जब तफ़तीश हुई , मैं बरामद हुआ उनके ख़यालों में ।
फ़ेल हो गया कॉलेज की हर परीक्षा में , जो जवाब लिखे थे वो सब थे उनके सवालों के !!
खा तो रहा हूँ लेकिन वज़न घट रहा है , वज़न बढ़ता है खाने पर उनके हाथों के दिए हुए निवालों से ।
कभी कभी शक होने लगता है , क्या वो भी चाहती है मुझ को , तंग आ गया हूँ उसकी रूठने मनाने की चालों से ।
ये बिन मौसम बरसात , ये मदमस्त फुहारें , शायद मौसम को भी अहसास हो गया है कि मैं खेल रहा हूँ उसकी झुलफ़ो से , उसके बालों से ।
इतनी रोशनी आँखें सह नहीं कर पायीं , क्या रुतबा है , क्या शबाब है , कुछ ऐसा रुबाब है उसके गालों पे ।
देखते ही उसको छा जाती है ख़ुमारी , इतना नशा शायद नहीं है मय के प्यालों में ।
रंगीन हो जाती है कुछ इस तरह से मेरी तबियत उसके पास होने से ,लगता है के मैं खेल रहा हूँ होली के गुलालों से ।
शादी के फ़ौरन बाद , जेब ख़ाली गयी है , बहुत पैसा लुटा चुका हूँ मैं अपने सालों पे !!
कश्मकश देखो , बरामद हुआ है मेरा दिल उसके पास लेकिन वो मेरा दिल वापस करने को नहीं है तैयार ।
और जुनून ऐ इश्क़ करता जा रहा मेरे दिल पे बेतहाशा लगातार वार पे वार ।
असमंजस में हूँ , दिल के बेग़ैर कैसे जी रहा हूँ , क्या बता सकते हैं आप ,क्यूँकि अब उसका दिल मेरे सीने में धड़क रहा है , बदन में प्यार का शोला भड़क रहा है ।
तो फिर बिना दिल के जीने की हल हो गयी है पहेली , दिलों की हो गयी है अदला बदली।
कुछ भी कह लो ये इश्क़ ओ मोहब्बत का जुनून , देता है बहुत सुकून , इसलिए तो ये इश्क़ नहीं मानता कोई क़ायदा , क़ानून ।
और जब हमारी गुमशुदगी की तफ़तीश हुई , तो वो हमें जेल मैं ढूँढ रहे थे , नादानों को ये मालूम नहीं था कि हम क़ैद थे उसकी झुलफ़ो के आग़ोश में, नया नया इश्क़ था इसलिए थे बहुत जोश में ।
ख़ैर , शादी के बाद भी जोश है ज़िंदा, उम्र क़ैद में हूँ अब , पहले था मैं एक आज़ाद परिंदा ।
लेखक——निरेन कुमार सचदेवा
Just for laughs , 😉 enjoy my dears.

Comments

No comments yet. Why don’t you start the discussion?

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *