चक्रवृद्धि प्यार में-“प्रतिभा पाण्डेय”

सुकून गिरवी हुए, बेशुमार बेचैनी चुन लिए,
साम्राज्य गमों का, अपने हिस्से कर लिए,
प्रेम में बिह्वल प्रेमिल जोड़े,
चक्रवृद्धि प्यार में,आदान-प्रदान कर लिए।

ना करना अब शिकायत दर्ज कभी दिल के थाने में,
अधूरी ख्वाहिशें समेट रखी दिल के तहखाने में।
तड़पते दिन,सिसकते अश्क,बहकती रात का जागरण,
मजा जितना मुहब्बत में, कहाँ मजा मैखाने में…?

शुरुआत मुलाकात की उधारी से,
ख्वाब दिखाकर ऋणीदार बदल गए,
दिव्यानन्द प्रेमिल प्रेम रस भरकर,
हालात अब लाचारी में बदल गए।

उधारी चुकता नहीं अब यादों में भी,
दिल जार-जार रोता बीतते साल दर सालों में भी,
सुकून के बेतरतीब हिस्से दिन में कुछ पल मिले,
मिलन अब रोज नहीं होता ख्वाबों में भी।

विरत पर मौन बड़ा कष्टदायक होता है,
मुहब्बत खुद हरण कर खुद छोड़ देता है,
प्रेम नाम ईश्वर का, अब कारोबार व्यापार हो गया,
शायद इसीलिए सभी को एक बार जरूर मरोड़ता है ।!

(स्वरचित)
प्रतिभा पाण्डेय “प्रति”
चेन्नई

1 Comment

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *