तराशने वाले पत्थरों को भी तराश देते हैं , नासमझ हीरे को भी पत्थर क़रार देते हैं ।
ठंडे दिमाग़ से सोचो , तराशे जाने पर क्या पत्थर को हुआ कोई नुक़सान , यक़ीनन नहीं , हज़ारों गुना बढ़ गया उसका मान और सम्मान ।
तराशा क्या गया , पत्थर निखर गया , सँवर गया , एक नायाब हीरा बन गया , सिर्फ़ एक मामूली पत्थर नहीं रहा , बदल गयी उसकी शकसियत , वो बन गया एक बेशक़ीमत हक़ीक़त ।
कुछ भी कह लो , कुछ भी सोच लो , आख़िरकार हीरा है तो एक पत्थर ही , हाँ उसकी रोशनी , बनावट है एक चमत्कार , इसीलिए तो इन हीरों का है अपना ही एक बाज़ार ।
कुछ मूर्ख लोग हीरे पहना कर अपनी रईसी का बखान करते हैं , लेकिन पत्थर तो पत्थर ही रहेगा , सिर्फ़ उँगलियों में ना पहनो हीरे , दिलों को भी हीरों जैसे चमकाओ , ये मैं नहीं , कुछ विद्वान कहते हैं ।
सब इतने ख़ुशक़िस्मत नहीं होते कि हीरे पहन सकें , तुम अपनी इस ख़ुशक़िस्मती को बदल दो ज़िन्दादिली में , फैला दो तुम हीरे के चमक हर घर में , हर गली में !
सच है कि हीरे को हम पत्थर क़रार देते हैं , लेकिन ये पत्थर तराशे जाने पर कई रूप धारण कर लेता है , मूर्तियाँ भी बनती हैं इसकी, और इन में दिखते हुए भगवान को हम कितना प्यार देते हैं ।
और एक बात , पत्थर का अपना है महत्व , हीरे का अपना है अस्तित्व , घर बनाने के लिए हीरा क्या काम आएगा , एक मज़बूत घर तो ईंट , सिमेंट और पत्थरों से ही बनाया
जाएगा ।
हीरे ने अपनी अजीब ओ ग़रीब चमक से दुनिया को क़ायल कर दिया है, तो पत्थरों ने भी पक्के घर बना कर , लोगों को उन में आसरा दे कर , एक अलग मक़ाम हासिल किया है ।
हीरे की अँगूठियाँ पहनना , ये रईसों की है चाहत , लेकिन सर के ऊपर छत हो , ये तो है हर इंसान की ज़रूरत ।
तो हर हाल में पत्थर महान है , तराश दो तो बन जाता है हीरा , ना तराशो तो इस से बनती हैं इमारतें , इंसानी जज़्बात तो सब एक से ही हैं, जो हीरे पहनते हैं और जो हीरे नहीं पहनते , हर कोई माँगता है मन्नतें ।
क्यूँ ना हम बाशिंदा भी पत्थरों की तरह तराशें अपने मन को, और फिर हीरे की तरह बन कर , उज्जवल करें जीवन को ।
शायद आपने बड़े बूढ़ों के मुँह से सुना होगा कि वो इंसान तो हीरा है , आख़िर कैसे मिलती है किसी इंसान को ये उपलब्धि ?
यक़ीनन नेक काम कर ,भलाई कर , मेहनत कर , समाज सुधारक बन कर , समाज सेवा कर , कई महापुरुष बना लेते हैं हीरे जैसी अपनी हस्ती !!
लेखक——निरेन कुमार सचदेवा।
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