

मुझको केवल नहीं रंगना है, प्रीतम तुझसे होली के दिन,
रंग चढ़ाना प्रीत का ऐसा,रह पाऊं न तेरे बिन।
भर दूंगी सारे ख्वाब पलकों में,बन जाऊंगी तेरी हमराज
लौटा लाऊंगी सारी ही खुशियां,ले गई दुनियां जिसे छीन।
दर्द,तड़प,आंसू,कसक,सब कर देना तुम भी दूर,
न आयेगी वो रात कभी,फिर न लौटेंगे वो दिन।
सांसों की सरगोशी हो तुम,मकरंद की सुर्भित बयार,
सुने मधुबन के पुष्प बनो तुम,मैं सरगम की बीन।
तसव्वुर में तुम्हारे काट लेंगे,अपनी बची सांसे
न भाए मुझे रंग जहां के,हो जाऊं तुझ में लीन।
रजनी प्रभा