दिल की खुदी सजे तो, जज्बे न मिटते दिल के।
तामील वक्त से हो, हालात खिलते दिल के।
कुदरत हो दिल की साकिन, सजती दिखे खुदी तो,
हर हाल ज़िन्दगी में माकूल बनते दिल के।
हों दर्द-ओ-गम के आलम, इनकी दवा भी होती,
दुख भी न गर्दिशें दें,जज्बे ही सहते दिल के।
रुसवाइयां न टिकतीं, दिल की खुदी के आगे,
शर्मिंदगी से मिटतीं,जब अज़्म दिखते दिल के।
है कायनात सबकी, सबके लिए खुदाई,
सजता चहल दुआ से, अरमान सजते दिल के ।
स्वरचित मौलिक रचना।
एच. एस. चाहिल। बिलासपुर। (छ. ग.)