आप।
आप,का चेहरा
सुन्दर है।
कपड़े!और भी सुंदर हैं!
आप का घर!अति शोभनीय!
अपना है !अति उत्तम!
धनवान हैं?
नहीं ,खाता -पीता इंसान हूं!
क्या,मजाक है,
भगवान का दिया
फिर, इंकार क्यों?
खुश नजर आते हैं!
जी,दु:ख दिखा सकते नहीं ,
धन की परिभाषा,
कोश में नहीं।
मासूम क्यों बनते ?
मुझे कुछ, जरूरत है।
आप,आप दयावान हैं,
नेक हैं /जिंदा दिल /
इज्जतदार इंसान हैं।
नेक नामी की बस
हर रोशनी सूर्य नहीं होती!
टूटे इंसान की —-
हड्डियां चूर नहीं होती।
चेहरा कली सा खिलता है,
पर,काॅंटो से चुभन होती है।
(स्वरचित)
डाॅ सुमन मेहरोत्रा,
मुजफ्फरपुर, बिहार