ट्रेनिंग के वो 18 दिन
कट गया घर के बिन
अब लौट आए घर पर
निगाहे पड़ी सब पर
मां के चेहरे पर एक चमक
पिता का सीना गर्व से दमक
बहन का फरमाइस
हो रही है अपनी अजमाइस
मां के हाथो का खाना
खुल कर गाना
कितना बदल जाता है सब
एक नौकरी मिल जाने से
मिल जाता है छुटकारा पुराने ताने से।
याद करेंगी वो टेबल और कुर्शिया
जहा हमने ली है कभी सिसकियां
किताबो के वो पन्ने
कितनी यादें सने
दीवाल पर लगा भारत का नक्शा
बोले मुझे क्यों अब बक्शा
घर में अब होने लगी गिनती
पहले करनी पड़ती थी विनती
लोग पसंद करने लगे
अपने सभी बनने लगे
नया जीवन मिलता है यहां कुछ कर दिखाने से
कितना कुछ बदल जाता है एक नौकरी मिल जाने से।
टेबल लैंप की वो उजली चमक
कलम की स्याही का वो गमक
पन्ने पलटने की वो आवाज
आज महसूस हुआ इसका नाज
पढ़ने में रहा घर से दूर
नौकरी से भी मजबूर
मेहमान बन गए है अब घर के
जिम्मेदारी बढ़ गई है अब सर के
फिर से तो जाना ही है
नई दुनिया बसाना ही है
सबका दिल बहलाना ही है
कुछ बोल कर
कुछ गा कर सुनाना ही है
आना जाना तो लगा रहेगा किसी न किसी बहाने से
कितना कुछ बदल जाता है एक नौकरी मिल जाने से।
रचनाकार – Anand Parjapati