पंगु हुए संकल्प जब-“डाॅ०अनिल गहलौत”

पंगु हुए संकल्प जब, भरे न चाह उड़ान।
भुजबल के रहते मनुज, हारे फिर मैदान।।

गिरे अर्श से फर्श पर, लुढ़के फिसला पैर।
राजनीति के मोड़ की, कैसी विकट ढलान।।

चढ़े स्वार्थ का भूत सिर, झुक जाती तब रीढ़।
नहीं याद फिर कुछ रहे, आन बान या शान।।

कटे वृक्ष-से गिर पड़े, सारे कलुष-विमर्श।
पड़े धराशायी सभी, कुत्सा के अभियान।।

भूले अपनी अस्मिता, विस्मृत विमल अतीत।
ओढ़ पश्चिमी सभ्यता, बनते लोग महान।।

अच्चे अच्छों की करे, बिगड़ी अकल दुरुस्त।
ढीली कर देता अकड़, समय बड़ा बलवान।।

शरणागत बन देख तो, प्रभु के लंबे हाथ।
यह तो संभव है तभी, जब छूटे अभिमान।।
डाॅ०अनिल गहलौत

Comments

No comments yet. Why don’t you start the discussion?

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *