पत्नी -“उज्ज्वल प्रताप सहाय”

तुम मान मेरी, सम्मान मेरी, तुम मेरी गृहस्वामीनी,
तुमसे ही मेरा आन-बान, तुम हो मेरी अर्धांगनी,
जीवन के हर कदम पर साथ तुम्हारा पाऊँ मैं,
हर रिश्ते का पालन करूँ मैं, तुम रहो सदा सहचारिणी।

सातों जनम का साथ है तेरा, तुमसे ही मेरे सात रंग,
सातों लोकों की खुशियाँ तुम, सात सुरों में तुम ही संग,
सातों शक्ति तुमसे ही मेरी, सात समुंदर भी मैं पार करूँ,
सातों फेरो के सात वचन निभाऊ, तुम रहो मेरी अभिन्न अंग।

जनम हुआ, पली बढ़ी,तुम जनक के क्यारी से,
हर जन में आनंद जगा, तुम्हारी हर किलकारी से,
शिक्षित हुई, सुसंस्कृत हुई, अपने कुल का नाम किया,
फिर छोङ पीहर, ससुराल चली, शादी कर किसी अवतारी से।

जनक ने कन्यादान किया पर तुमने तो स्वदान दिया,
छोङ निज माँ-बाप को, अजनबी संग रहने का आह्वान किया,
तुम अद्भुत धैर्य,तुम मर्यादा, तुम ममतामयी और कल्याणी हो,
मेरे गृहस्थ कठिनाइयों का दिल से तुमने समाधान किया।

दो कुलों की योजक तुम, तुमसे ही कुल चिराग है,
मेरे जीवन का अर्थ तुम, तुमसे ही राग-विराग है,
खोना मत पीहर की किलकारी, कुछ दुख हो तो बतलाना,
तुम मेरी आत्मा, मेरी काया, खुश तुमसे ही घर-बाग है।

हे वामांगिनी,तुम मेरे हर धर्म-कर्म में,
तुम अंकशायिनी मेरे हर जीवन में,
तुम ही मेरा गौरव, तुमसे ही मेरी जीत-हार,
हे मेरी सहगामिनी, तुम ही मेरे लाज-शर्म में।

लो आज तुमको एक वचन दिया,
जन्म दिया तुमको, उनका भी वरण किया,
पूज्य होंगे वो हर संबंधी हम दोनों के, जिनसे
हमारा जन्म हुआ और जिनका अनुसरण किया।

समझेंगे एक-दूजे को, विश्वास कभी ना खोयेंगे,
सुख को साथ बितायेंगे और दुख में साथ ही रोयेंगे,
तुम मेरा दर्पण बन के, मेरा व्यक्तित्व संवारना,
हम घूँघट बन कर सर का, तुम्हारा लाज़ बचायेंगे।

जीवन के हर सरल-कठिन कदम पे,
विश्वास ना खोना, मुझ हमदम पे,
मृत्यू हमको विलग कर भी दे,
सहगामिनी बनना मेरी हर जनम में।

1 Comment

  1. Kuldeep singh रुहेला

    बहुत सुंदर व्याख्या की आपने पत्नी की बहुत बहुत सुंदर

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