
धरती पर न्याय झुलस रहा था।
अन्याय ठहाके मार हंस रहा था।।
शक्ति के अहंकार में चूर सत्ताधारी।
निर्दोष ब्राह्मणों का रक्त बहा रहा था।।
शास्त्र विद्या संकट में तब था।
मां सरस्वती का हनन हो रहा था।।
तब श्री हरि ने निर्णय लिया था।
ऋषि जमदग्नि की पत्नी रेऊका के।।
गर्भ से जन्म लिया था।
छठा अवतार तब धारण किया था।।
शिव को अपना गुरु बनाया।
शस्त्र विद्या तब धारण किया था।।
परशु को धारण तब करके परशुराम।
परशुराम अवतार लिया था।।
राजा कर्तव्य अर्जुन ने जब कामधेनु।
का हरण किया था।।
तब राजा के महल में जाकर।
परशुराम ने उनका संहार किया था।।
21 बार धरा को शत्रुओं विहीन किया था।
पर गर्भवतीयो पर नहीं कभी प्रहार किया था।।
स्वरचित रचना
संध्या सिंह
पुणे महाराष्ट्र