” पापा “-कृष्णा मणिश्री

कभी-कभी क्यों कहते पापा
जीवन मंत्र आप हो पापा

कोई पल न ऐसा बीता
हो यादों से आपके रीता
होश संभाला है जब से
आपकी छाया है तब से
पाया आपका रूप-स्वरूप
आती-जाती छाँव-धूप

सर उठाकर सीखा जीना
किसी का अधिकार न छीना
जिन्हें जरूरत उन्हें सिखाया
कठिन मार्ग चलकर बतलाया
ऊंच-नीच का भेद नहीं
सब सिखाया आपने यहीं

अन्न का करते सम्मान
दाने-दाने का रखते ध्यान
नई पीढ़ी को दिशा बताते
मुश्किल समय में उन्हें जगाते
नए लोग प्रश्नों की सूची
पूछताछ फिर बात पचीसी

सब कुछ कर सकते हैं आप
असंभव शब्द है बेबुनियाद
प्यार थोड़ा कम जताते
एहसासों को सहज छुपाते
आपका स्नेह नहीं है कमतर
कोई नहीं है आप से बेहतर

कभी कभी क्यों कहते पापा
जीवनमंत्र आप हो पापा

    ✒️  कृष्णा मणिश्री 

मैसूर, कर्नाटक

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