
कई वर्ष बीत गए पिता से जुदा हुए।
पिता की आवाज सुनने को ,
आज भी मन करता है ।
कई वर्ष बीत गए है ,
पिता के घर से डोली में विदा हुए ।
वर्ष बीत गए है,
पिता श्री के घर से विदा होकर
पति के साथ नया घर संसार बसाकर ।
किन्तु न जाने क्यूँ ,
शाम ढलते ही मन,
उस घर पहुँच जाता हैं।
आज भी दिल भर आता है ,
घर मे शौर का होना।
बाबूजी का आफिस से लौटकर आते ही
दिन भर का हाल सुनाना ।
शाम होते ही याद आता है,
बहुत मुश्किल से मन समझाती हूँ।
वो दिन बीत गए ,
अब तुम सपनो मे जी लिया करो ।
उन पलो को जो लौट के ,
कभी ना फिर आएँगे।
आज भी बाबूजी से किए ,
वादे को निभाती हूँ ।
सबको खुश रखने की ,
अथक कोशिश मैं ,
अपने आँसू पी जाती हूँ ।
कोई कह दे मेरे ईश्वर से ,
या तो शाम ढला ना करे ।
या बाबूजी के घर की ,
असहणीय याद ना आया करे।
बहुत खुश हे हम,अपनी इस दुनिया में
बिन माँगे सब पाया है,
लेकिन दिल से यादे
कौन निकाल पाया है ।
पिता के घर की यादे ,
कौन भुला पाया है ।
कई वर्ष बीत गए पिता से बिछुडे
*डॉ सुनीता श्रीवास्तव
इंदौर (मप्र)
9826887380