
पिता वह वटवृक्ष
जो सदा खड़े रहकर
छाया प्रदान करते ।
पिता बहते पानी की नदी
जिसके जल से
परिवारजन होते तृप्त ।
पिता वह कवच
जिसमें सब बच्चे
स्वयं को सुरक्षित पाते ।
पिता वह फलदायी वृक्ष
जो स्वयं न खाकर भी
सबका पोषण करते ।
पिता सदैव ही रहता तत्पर
अपनी संतान के लिए
मानो कल्पवृक्ष बनकर ।
पिता क्षीर समुद्र की वह नाव
जब तक रहते दुनिया में
संसार रूपी सागर को पार करवाते ।
डॉ़ . कुसुमलता टेलर यूनिवर्सिटी रोड उदयपुर राजस्थान 31 3 001 मोबाइल नंबर 9461 201557
बहुत सुन्दर रचना इसके लिए बधाई
बेहतरीन अति सुंदर आपकी लेखनी बहुत सुंदर गया था कि आपने पिता के लिखनी पर