
लड़खड़ा कर गिरा पहली बार जब मैं,
तुमने बाहें बढ़ाकर संभाला मुझे;
उंगली थामी थी तुमने मेरी ज़ोर से,
फिर गिरने से पहले उठाया मुझे।
लड़खड़ा ……
घोड़ा बनने को जब मैंने तुमसे कहा,
तुमने पीठ पर अपनी मुझको चढ़ाया;
हराया था मैंने दोस्त को दौड़ में,
मेरे बस्ते को तब तुमने उठाया।
लड़खड़ा ……
कंटक भरी राह पर चलना सिखाया,
तुमने उड़ना सिखाया सपनों को मेरे;
पहचान कराया स्वाभिमान से मेरा,
मेरा अभिमान हो पापा तुम मेरे।
लड़खड़ा …..
मैं खड़ा जब हुआ अपने पैर पर,
सोचा बोझ तुम्हारा कुछ कम करूं;
तुम बोले कि मैं हूं पापा तेरा,
अब मित्र बनकर सदा हम रहें।
लड़खड़ा ……
आयु ने पापा को कभी छेड़ा नहीं,
कंधे उनके अभी भी झुके ही नहीं;
मेरे बेटे के साथ लगाते ठहाका,
मैं किनारे खड़ा मुस्कुराता रहा।
लड़खड़ा ….
निरुपमा मेहरोत्रा
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