पिता प्रेम – लगाव भले ही पिता का , मुखर नहीं होता है।संतानों को कष्ट यदि हो , मन ही मन वो रोता है। बेटी का हर शौक हो पूरा। रहे ना अरमां कोई अधूरा।बेटी की शादी का सपना , बचपन से ही संजोता है।प्रेम – लगाव भले ही पिता का , मुखर नहीं होता है। पर्व में सबके वस्त्र नये हों। अपने कपड़े भले धुले हों।बच्चों की मुस्कान की खुशियाँ,जीवन भर वो ढोता है।प्रेम – लगाव भले ही पिता का , मुखर नहीं होता है। माता का सिंगार पिता है। बच्चों का आधार पिता है।उस बचपन का दोष क्या दाता,अपना पिता जो खोता है।प्रेम – लगाव भले ही पिता का , मुखर नहीं होता है। —- सतीश मापतपुरी 402,हर्षिता अपार्टमेंट, रूपसपुर,पटना,बिहार पिन कोड- 801506
