पिता नव जीवन जीवन दान । संतृति में बसते जिसके प्रान ।
पिता आकाश से उच्च महान ।
पिता परम परमेश्वर प्रतिनिधि, कहते वेद पुरान ।
पिता को कोटि प्रनाम करें । आओ इनका सम्मान करें ।…………………
अपने सब सुख चैन छोड़ के ,पढा लिखा दीन्हा ।
शादी की तुम अलग हो गये , ऐसा क्यो कीन्हा ।
दिया जीवन भर का धन जोड़ । काय तुमने लीन्हा मुख मोड़ ।
क्यों नहीं रखते उनका ध्यान ।
पिता परम ……………………………………………………….१
किया हनन अपनी इच्छा का, शुभ संस्कार दिये ।
तेरी प्रगति के काज जनक ने ,नहीं व्यापार किये ।
दिखाते क्यों अपना एहसान । दिया शिक्षा सम्पत्ति सम्मान ।
किया खुद सपनो का बलिदान ।
पिता परम ………………………………………………………२
उऋण कभी नहीं हो सकते तुम , कृपा जो कीन्ही ।
सुन्दर से संस्कार दिये सब , शिक्षा शुभ दीन्ही ।
चरन में जिनके चारों धाम । अशीशे बनते सारे काम ।
कि जिससे बढती सुन्दर शान ।
पिता परम …………………………………………………..३
वृद्धालय हि अनाथालय है , ये ठीक नहीं ठानी ।
तुम भी होगे वृद्ध अपन गति, मन में नहीं जानी ।
करो अब अनुकरणीय सब काम । काम सब करना है निष्काम ।
सीखती ये देख देख सन्तान ।
पिता परम …………………………………………………….४
कठिन साधना को नित करके ,काबिल बना दिया ।
बदले में क्या कहो कभी कुछ , तुमसे लिया दिया ।
भाग्य से मिलता सेवा काम । करो कर्तव्य कर्म अभिराम ।
श्रद्धा सत सेवा कर्म महान ।
पिता परम ……………………………………………………५
पिता पुत्र हित क्या क्या करता कोई समझ न पाता है ।
स्वयं सूप को सिर पर धर कर ये यमुना पार कराता है ।।
दोहा
पिता पिता क्रम से चलो , परम पिता मिल जाय ।
पितु आज्ञा को पालना , यही प्रभु को भाय ।।
नित्य पिता प्रणाम कर , आज्ञा भी तू मान ।
केवल पितु आशीष से , हो जै है कल्यान ।।
परसुराम को याद कर , अमर जगत में आज ।
वेद शस्त्र अरु शास्त्र को , जानत सकल समाज ।।
राजेश तिवारी ‘मक्खन’
झांसी उ प्र
मेरी यह रचना मौलिक व स्वरचित है।
राजेश तिवारी ‘मक्खन’
झांसी उ प्र
