प्रथम पुज्य मम तात है, दिया मुझे संसार।
करूॅं नमन में तात श्री, करता हिय उपकार।।
उॅंगली मेरी थामता, मुझे दिखाता राह।
झोली खुशियों से भरे, ऐसी मेरी चाह।।
प्रथम ज्ञान देता पिता, लक्ष्य कराता भान।
श्रमकण बहाकर सदा, रखता अपना ध्यान।।
पिता सूर्य सा तप रहा, देता श्रम का दान।
पालन-पोषण नित करें,देता है बलिदान।।
अटल शिखर सा वो खड़ा,करता नित्य बचाव।
संकट को निज झेलता,खड़े है हर पड़ाव।।
राम कृष्ण मेरे पिता, मैं चरणो की धूल।
सकल ज्ञान देते हमें, कैसे चुकता मूल।।
पिता वृक्ष सा है बना, करता इच्छा पूर्ण।
बच्चों की छाया बने, हरदम करते घूर्ण।।
लेखिका प्रियंका भूतड़ा प्रियाबरगढ़ ओडीशा

Wonderful and meaningful