प्रेम एक अजूबा है-“निरेन कुमार सचदेवा”

तुमने रूह में समा जाने को प्रेम कहा, मैंने साँसों में बिखर जाने को प्रेम कहा।
तुमने नज़रें चार हो जाने को प्रेम कहा, मैंने जुनूने इश्क़ में चेहरे पर छाए निखार को प्रेम कहा।
मैंने इश्क़ में होती तमन्नाओं की बौछार को प्रेम कहा।
मैंने महबूब के दीदार को प्रेम कहा, मैंने जीवन के आधार को प्रेम कहा।
मैंने दिल में उठती तड़पन को प्रेम कहा, धक धक हो रही धड़कन को प्रेम कहा।
मैंने लफ़्ज़ों की खामोशी को प्रेम कहा, महबूब की बाहों में होने पर, जो छाई मदहोशी उस को प्रेम कहा।
मैंने इज़हार, इंतज़ार, इकरार, छाये खुमार को प्रेम कहा।
मैंने बहकते कदमों को प्रेम कहा, महकती हवाओं को प्रेम कहा।
फ़िज़ाओं में गूँजती सदाओं को प्रेम कहा।
मैंने दो दिलों के अटूट बंधन को प्रेम कहा, इश्क़ की बिखरती महक , उसने छिपी ख़ुशबू ऐ चंदन को प्रेम कहा।
मैंने जीवन की असलियत को प्रेम कहा, जिस कारण हम बाशिंदे जीवित हैं, उस हक़ीक़त को प्रेम कहा।
मैंने मासूमियत , इंसानियत , हर हसरत , हर चाहत को प्रेम कहा।
सबसे नायाब और बेशक़ीमती दौलत को प्रेम कहा।
बस इलतजा है मेरी उस मौला से , मालिक मेरे कर प्रेम की बरसातें , दे हमें कुछ ऐसी अजीब ओ गरीब नियामाते और सौग़ातें !
लेखक——-निरेन कुमार सचदेवा
May this amazing emotion of love 💕 engulf planet earth !

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