प्रेम और विरह : ‘डॉ गुलाब चंद पटेल’

प्रेम एक एहसास हे जो दिल से जुड़ा हुआ है राधा कृष्ण का प्रेम कितना अजीब है।एलपीजी कहते है की प्रेम अंधा है।प्रेम मे लोग पागल हो जाते है।
“मेरे शरीर मे हुआ मधुर स्पंदन
प्रभु कृष्ण को मेरा वंदन “
प्रभु ने प्रेम का सर्जन मनुष्य के जन्म के साथ ही किया है।उसने मनुष्य को संवेदना दी है किन्तु उसे प्रकट करने की ,स्पर्श से अनुभव करने की और ह्रदय मे से प्रेम की धारा बहाने की क्षमता दी है प्रेम शांति और मधुरता देता है।
प्रेम यह ढूंढ ने की चीज नहीं है ।प्रेम अपने आप प्रकट होता है।सुंदर फूलो को देखकर भी प्रेम फुट निकलता है ।फूलो की महक ह्रदय मे उर्मियों को पेड़ा करता है।
कृष्ण और राधा का अटूट प्रेम था ।उसकी कयामत कहो या कृपा मेरे जीवन मे भी प्रेम की कलिया खिली थी।उसे तोड़ने की बजाय उसे हमेश के लिए जिंदा रखने का प्रयास किया है।ये पुष्पो को हमने अन्याय किया हैया न्याय दिया है वो मौजे पता नहीं।मेरी समझ मे नहीं आ रहा है।प्रेम से प्रभु को पा सकते है उसी तरह मनुष्य के दिल को जीतने के लिए प्रेम महत्वपूर्ण है।ज़िंदगी प्रेम से ही जीई जाती है।
हमे ये लिखने की प्रेरणा कृष्ण ने ही दी है।हमने प्रभु को प्रेम पत्र लिखे है।हमने कृष्ण को प्रतीक माना है। हाई टेक युग मे प्रेम पत्र खो गए है। उसका स्थान ईमेल और एस एम एस ने लिया है।
जिस तरह न्यूज़ चैनल आने से न्यूज़ पत्रिकाए बांध नहीं हुई है उसी तरह इस हाई
टेक के जमाने मे भी एक वर्ग एसा है की जिनहे हस्तलिपि के प्रेम पत्रो से प्रेम रहा है।एक मुहावरा है की “love is blind”कभी कभी हम देखते है की लड़के लडकीय प्रेम मे इतनी पागल होती है की इन्हे अच्छे बुरे का ख्याल ही नहीं रहता है।प्रथन निगाह मे अपनी आंखो मे बस जाते पत्र को अनहद प्यार अंधी व्यक्ति की तरह करते है।कभी कभी जब इस तरह के प्यार मे कोई एक व्यक्ति दगा करता है तब दूसरी व्यक्ति पर आफत आ जाती है।और जीवन के अंत की और जाने के लिए प्रयाण करते है।इस महामूली अमूल्य ज़िंदगी का अंत आग की लपेट मे या सागर मे कूदकर अपने प्राण त्याग देते है।
सच्चा प्यार मिरा और कृष्ण का है।मेरे तो गिरधर गोपाल दूसरों न कोई,मिरा जब शादी करके ससुराल जाती है,तब भी वो प्रभु भक्ति मे लिन होती है।मिरा का पति राणा उसे जहर का कटोरा देता है तब भी वो प्रभु भक्ति सेर अलिप्त नहीं होती है।मिरा को जहर का कोई असर नहीं होता है प्रभु ने उसे बचलीय होता है।भगवान ने स्त्री मे प्रेम का भंडार रखा है।मनुष्य मे माया और संवेदना राखी है।
दूसरा प्रेम का उदाहरण भक्त प्रहलाद का है।उसे उसके पिताजी हिरण्य कश्यप बहुत यातना देते है फिर भी वो प्रभु भक्ति नहीं त्यागता ।जब उसे अपनी फूफा होलिका की गोदी मे बैठकर अग्नि जलाते है तब प्रभु उसे बचा लेते है।भक्त प्रहलाद का प्रभु के प्रति जो प्रेम था उससे ही प्रभु उसे बचा लेते है।तीसरा प्रेम लैला मजनू का सुप्रसिध्ध है।हम देखते है की कभी कभी शारीरिक आकर्षण और सुख भोगने की लालसा के लिए किया जाता प्रेम सामनेवाली व्यक्ति के जीवन मे दुख पैदा करता है।
आज ह्रदय से प्यार करनेवाले लोग कम है।उसी के कारण प्रेम ब्याह निष्फल हो जाते है।प्रेम से प्रभु को पा सकते है।प्रेम से जगत को जीत सकते है।प्रेम के अनेक प्रकार है। मातृ प्रेम,पितृ प्रेम,प्रभु प्रेम,भातरु प्रेम,बहन भाई का प्रेम ,पति पत्नी का प्रेम ,मित्रा प्रेम,पुत्र प्रेम,नन्द भोजई का प्रेम पशु प्रेम ।कबीर कहते है की “ढाई अक्षर प्रेम के पढे सो पंडित होई।“कवि राजेंद्र शाह की पंक्ती मे
।केवड़िया का कांटा हमे वनवगड़े मे लगा रे ,मुई रे उसकी महक कलेजे मे आग ज्यादा लगी रे “
उसी तरह एक ग्रामीण कन्या लकड़िया लेने जंगल मे जाती है और गीत इस तरह गति है।
“ईंधन लेने गई थी मोरी सहियर ,ईंधन लेने गई थी रे लोल
बेला दोपहर की हुई थी मोरी सहियर ,बेला दोपहर की हुई थी रे लोल
गुजरात के राजकुंवर कवि कलापी की पंक्तिया यहा प्रस्तुत करते है।
“पैदा हुआ हु ढुढ़ ने तुजे सनम ,उम्र बीत गई सनम तुजे ढुढ़ ने के लिए।“
हमे प्रभु के लिए कुछ पंक्तिया दिल मे पैदा हुई है ये इस तरह है,
है कृष्ण एसा भी हो सकता है,
मेरी आंखो की फाल्के आँसू से भीग जाए एसा भी हो,
तेरे विरह की वेदना मे प्यार का वसंत सुक जाए एसा भी हो ,
वेलेंटाइन डे पर तुमने दिया हुआ गिफ्ट काही खो जाए एसा भी हो,
तुमने भेजे गए ईमेल काही डिलीट हो जाए एसा भी हो।
तेरी आंखो की तेज किरणों से आँख चकाचौंध हो जाए एसा भी हो,
तेरे प्रेम के एस एम एस से मेरा दिल बिंध जाए एसा भी हो
तेरे लिए रचा हुआ स्वप्न महल काही टूट जाए एसा भी हो
दरिया की लहरों की तरह उछलती उर्मिया काही समा जाए एसा भी हो
तेरा कमाल की तरह खिला हुआ चेहरा काही शर्मा जाए एसा भी हो
गुलाब तेरे प्यार के उपवन मे काही खो जाए एसा भी हो
आंखे मेरी मयूर पंख बनकर तेरे मुकुट मे लग जाए एसा भी हो
मेघ धनुष्य रंगो से दिल मेरा रंग जाए एसा भी हो
गोकुल की गोपिया के संग इंतजार कर दिया जाए एसा भी हो
राधा के कृष्ण संग रंगीला रास खेला भी जय एसा भी हो
दूसरी रचना है,
हे प्रीतम तुम हसे तो
तुम हसे तो सुबह मेरी ,तुम रुओ तो रात
तुम शीतल बनकर आओ तब ,समंदर उछले सात
तेरी परछाई के पीछे पीछे दौड़ पड़े गुलाब
तेरी झुलफ़े देखकर उड़ने लगे सैलाब
तेरी रोशनी से घर को मिले सच्ची पहचान
तेरे द्वार पर इले मधुर खुशनुमा पवन
तेरे पाठ पर गगन धारा का मधुरम मिले प्रकाश
तेरे स्पर्श से मेरी निर्जन रात बन जाए सुंदर सवार
हे प्रीतम तुम हसे तो
कवि कलापी कहते है कीजहा जहा नजर मेरी पड़े
यादी भरी है आपकी
आँसू मे ये आँख से यादी टपके आपकी
माशूका के गाल की लाली मे है लाली ,और जहा जहा चमन जहा जहा गुल वह वह निशान है आपकी
देखता हु यहा आती हुई सागर की लहर
उस पर चल रहाई नाजुक सवारी आपकी
कवि कलापी की शादी 15 साल की उम्र मे कच्छ की राजकुमारी राजबा के साथ हुई थी॰वो कलापी से 12 साल बड़े थे।दूसरी शादी सौ राष्ट्र के कोटड़ा सांगाणी की राज कुमारी आनंदी बा की साथ हुई थी ।राजबा की साथ आई हुई मोंघी बा उनकी दासी शोभना के नाम से जाने गए।शोभना बा के अप्रतिम सौन्दर्य के कारण कवि कलापी मे कविता का जन्म हुआ सिर्फ एक कल्पना और अपनी पवित्रता के कारण शोभना की शादी एक खवास युवा के साथ हुई थी किन्तु शोभना पर त्रास होने के कारण कवि कलापी ने उससे डिवोर्स करवाए थे।शोभना के साथ उनके प्यार ने इन्हे राजकीय दरज्जा दिलाया ।उनका प्यार देह के लिए नहीं था।शिरीन फरहाद ,लैला मजनू ,कृष्ण राधा ,राम सीता के के प्यार की याद दिलाता कवि कलापी का ये प्रेम ने लंबी तपश्चर्या कराई थी।ये शारीरिक प्रेम का द्र्श्य नहीं था।
वेदना पेड़ा होती है।एक दूसरे के गुण अवगुण देखने मे यह भूल जाते हाइकी विश्वास ही प्यार के स्तम्भ की ईंट होती है।अपेकषा कभी ज्यादा नहीं होती है,इंसान इंसान के पास अपेकषा रखे उसमे गलत क्या है?
विरह क्या होता है ?
है प्रिये ,आप होते नहीं तब केसी गुजरती है वो मत पूछिये ,तारे क्या समजे,बेचारी रात क्या जाने ?विनय की रीत सीखा दीजिये, शिस्त का अर्थ समझाइए ।
अभी तो नादां है ये दिल प्रीत की बात क्या जाने ?
झरुखे से देखती दुल्हन के मनोभाव ,किसी के मंडप मे पग रखने वाली बारात क्या जाने ?
विश्व के न्यायालय मे मेरे सत्य को प्रभु गुनहगार साबित कर दिया है।मे दौड़कर आकार खड़ा आपके सामने आप मेरे वकील न हुए ,और हमने भी अपील न की,और सत्य के गले मे फांसी का रसी लटक गया ।हमने हमारी आंखो से विरह की वेदना मे दुखी होते हुये देखा है।किन्तु एक आंसुकि बूंद भी मेरे गाल पर से सरका नहीं।कारण की दूर खड़े होकर आप हास रहे थे।हमे आप कब मिलोगे ?
“जो नींद आती तो ख्वाब आते,जो ख्वाब आते तो वो आते,मगर उनकी जुदाई मे न ख्वाब आया न वो आए ।“
मे सागर रूपी शैया मे झूल रहा हु,आप की याद सताते मे अचानक जग जाता हु,आपका सुंदर चेहरा हमे दिखाई नहीं देता।आप केसे हो हमे गहरी निदसे जगा देते हो,सुमधुर वातावरण मे छिपी हुई काली कोयल की तरह टहूकारकरके हमे जगा देते हो। मे जंगल के मयूर की तरह आपके पीछे पागल बनकर जीवन की हरपल मे याद करनेवाला ओर कौन हो सकता है मे ही हू प्रिये।आप की याद मे मस्त ये दिल हर हमेश आपको ही याद दिलाता है.प्रिये तेरी झंखना मे रतदीन दिल मेरा तेरा दीवाना बनगया है।तेरे बिना मेरा जीवन सुना सुना है।तेरा संदेश नहीं मिलने से दिल बेचेन है ।तेरी याद मे मे पागल हु।तेरे प्रेम की खातिर ये दिल आप का हमेशा इंतजार कर रहा है।विरह मे जुदाई का अनुभव होता है।जीवन मे जब कोई अपना दूर चला जाता है तो उसका मोह हमे दिन रात सताता है।एसे ने ये आंखे उसकी ही तलाश करती है। उसकी ही यादे दिल मे धड़कन बनकर रहती है।विरह की वेदना असह्य होती है।
न छूटे अब मोह तुम्हारा ,न जग मे है दूजा कोई ,समझ के अपना जिसे पुकारु ।
डॉ गुलाब चंद पटेल
कवि लेखक अनुवादक
मो 8849794377

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