प्रेम के पथ पर पिता का पात्र मूक क्यों””
प्रेम के पथ पर पिता का पात्र . मूक क्यों है?”
माता-पिता दोनों ही बच्चों के होते भाग्य विधाता है
,दोनों का प्यार ,बच्चों को जीवन जीना सिखाता है।
ममता की मूरत मां होती ,तो पिता की आंखों के हम होते तारे हैं,
उंगली पकड़कर मां चलना सिखाती, कंधे पर बैठाते पापा हैं।बच्चों की हर फरमाइश, पूरी करते सदा ही पापा है,
हम बच्चों पर ,जान न्यौछावर करते हमारे पापा हैं।
हम बच्चों का अभिमान होते ,हमारे पापा हैं,
मूक रहकर सब कुछ करते ,बच्चों के लिए पापा हैं।
प्रेम के पथ पर पिता का पात्र मूक क्यों समझ नहीं आता है,
हम बच्चों के लिए अपना सर्वस्व, न्योछावर करते हमारे पापा हैं।पिता भी मां की तरह ,अपनी जान से ज्यादा बच्चों को चाहते हैं,अपने बच्चों को तनिक कष्ट भी, नहीं होने देते प्यारे पापा हैं।पिता के मोल को आज तक, कोई समझ नहीं पाया है..
मां के आगे पापा के कद को ,बौना हमने ही बनाया है।
पिता बिना घर , घर नहीं लगता बिल्कुल नहीं सुहाता है..,
हम बच्चों की जान होते , हमारे पापा हैं…।
तकदीर वाले वह होते हैं ,जिनके साथ होते पापा हैं,
पापा से बिछड़ कर, जीना होता कितना मुश्किल..
पापा को खोकर मैंने जाना है।शत शत नमन करते हैं ,
जहां भी मेरे प्यारे पापा हैं,पापा को याद करने का कोई एक दिन नहीं होता ,
दिल में सदा ही जीवित रहते मेरे पापा हैं।
स्वरचितरंजना बिनानी काव्यागोलाघाट असम
