प्रेम-“डॉ विनोद कुमार शकुचंद्र”

प्रेम का है दिन,प्रेम को समर्पित
प्रेम से करो प्रेम,प्रेम के ही हित

प्रेम से बसंत भी कर रही है प्रेम
प्रेम में हैं समस्त,विश्व सारगर्भित

प्रेम से मिलो,प्रेम की तरह ही तुम
प्रेम में ही जीवन कहीं है निहित

प्रेम,बंधन नहीं है,प्रेम है स्वतंत्रता
प्रेम ही समझे है,प्रेम का गणित

प्रेम है अमर, जाति धर्म से है परे
प्रेम से है ईश्वर,रहे सदा ही हर्षित

डॉ विनोद कुमार शकुचंद्र

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