दिलों के बंधन में दूरियाँ नहीं गिनते——जहाँ इश्क़ हो वहाँ मजबूरियाँ नहीं गिनते———!
तो फिर आख़िर क्या गिनते
हैं——-गिनते हैं महज़ कमज़ोरियाँ।
इश्क़ में दो लोग बन जाते हैं एक दूज़े की कमज़ोरी, बन जाता है एक चाँद और एक चकोरी ।
और क्या गिनते हैं, गिनते हैं इश्क़ में मिली सौग़ातों को——-।
ये सौग़ात है साथ वो गुज़ारे पल , गिनते हैं साथ गुज़ारी शामों को, साथ गुज़ारी रातों को ——-।
फ़रिस्त है बहुत लंबी, गिनते हैं अजब नज़ारों को ———-
आसमान में दिखने वाले सितारों को।
कोई ऐसी शह भी है जिसे नहीं गिनते——नहीं गिनते प्यार में किए हुए वादों को।
लेकिन हर पएल याद रखते हैं उस परम पिता परमेश्वर कि दिये हुए आशीर्वादों को।
अहसासों और जज़्बातों की गिनती करना हो जाता फिर है नामुमकिन——इश्क़ होने पर बहुत सुकून से कटते हैं पल छिन।
और वातावरण में फिर फैली हुई खुमारी का आप नहीं लगा सकते अन्दाज़ा।
इश्क़ होते ही फ़िज़ा में महकने लगती है इत्र की ख़ुशबू तरो ताज़ा।
देता हूँ दो प्रेमियों को ये चुनौती, नज़रों को करो चार, फिर गिनना दिल की धड़कनों को।
सिर्फ़ बेतहाशा धक धक ही सुनाई देगी, गिन नहीं पायेंगे, इस बार मात खानी पड़ेगी दो अपनों को।
बताओ , कितने बार वो आते हैं ख़्वाबों ख़यालों में———।
ढूँढ के दिखाओ उन्हें इश्क़ से भरे मय के प्यालों में——!
नहीं ढूँढ पाये, ये तो होना ही था, दो दिलों को एक दूजे में खोना ही था———-।
जो कभी थीं मजबूरियाँ , आज बन चुकी हैं ज़िम्मेदारियों।
शादी हो चुकी है, अब एक है दिलबर और एक है दिलबर जानियाँ———-!
लेखक——-निरेन कुमार सचदेवा।
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