
मेरे घर की शान है बेटी।
आन मेरी अरमान है बेटी।।
पिता का सम्मान है बेटी।
मां की पहचान है बेटी।।
सुख-दुख सारे समझे बेटी।
सब का रखे ख्याल है बेटी।।
अरमानों की मान है बेटी।
सपनों को कर पूरे मिसाल है बेटी।।
कहीं धूप तो कहीं पर छांव।
बनकर रहती ढाल है बेटी।।
गम में भी खुशियां बांटे जो।
करती सबको निहाल है बेटी।।
बेटी से ही जीवन है जग में।
हम सबका अभिमान है बेटी।।
चलता जिससे संसार वह बेटी।
ईश्वर का वरदान है बेटी।।
कम नहीं जग में किसी से।
करती सभी कमाल है बेटी।।
मेरे घर की शान है बेटी।
आन मेरी अरमान है बेटी।।
स्वरचित रचना
* संध्या सिंह, पुणे महाराष्ट्र*