
भूले से भुलाया नहीं जाता वो पहले मिलन का अहसास,
कैसे तुम्हारी इक छुअन से, जाग उठी मिलन की आस।
भूल गयी थी ज़माने को, भूल गयी सब शर्म ओ हया मैं,
सिमटती गयी थी बाहों में, चल गया था तुम्हारा प्रेमपाश।
ऐसा लगा मुझे इक पल को वक़्त यहीं पर ठहर जाए,
कभी ना जुदा हों हम दोनों, सदा रहें एक दूजे के पास।
अंग अंग खिल उठा ऐसे, जैसे ओस की बूंदों में गुलाब,
चहक उठी मैं चिड़िया सी, पल था जीवन का वो खास।
यादें को उस पल की सीने में दबाए बैठी थी आज तक,
सुलक्षणा से छिपा सकी नहीं, था खुद से ज्यादा विश्वास।
©® डॉ सुलक्षणा