
तेरे आग़ोश में आयें हैं हम ग़म भुला कर , ले जाती थी जहाँ माँ लोरी सुना कर , ऐ नींद मुझे ले चल आज उस जहाँ में , देखूँ क्या अब भी हैं परियाँ वहाँ पर ?
ऐ नींद मुझे तू धोखा ना देना , सालों साल ना जगाना , चल ऊँगली पकड़ ले मेरी , ले चल मुझे वहाँ जहाँ ख़ूब खेलता था मैं पानी में , क्या आज भी मौजूद है वो दरिया वहाँ पर ?
वो रंग बिरंगी परियाँ , नाचती हँसती हुई , कभी थीं ज़मीन पर और कभी हवाओं में उड़तीं हुईं , वो यादें आज भी ताज़ा हैं , सब कुछ था बहुत बढ़िया वहाँ पर ।
बहुत छोटी उम्र थी , माँ का हाथ पकड़ कर चलना ही सीखा था , लेकिन वो छोटी सी चुलबुली नटखट सी लड़की याद आ रही है , बहुत ख़ूबसूरत थी उसकी हँसी , क्या आज भी है वो छमिया वहाँ पर ?
ऐ नींद अपना वादा निभाना , बाक़ी की बची हुई उम्र मुझे सोते ही है रहना , बस शर्त ये है की माँ की गोदी हो मेरे पास , माँ फिर से खिलाए मुझे वो प्यार भरा निवाला , तभी मानूँगा मैं अपने आप को क़िस्मत वाला !
वो माँ के कंठ में कोयल का वास था , माँ की लोरी की कितनी मधुर थी धुन , मुझे नींद तभी आती थी जब मैं माँ की लोरी लेता था सुन ।
ऐ नींद मुझे ले चल माँ के आग़ोश में , आज ख़ूब जानता हूँ कि जन्नत का क्या है मतलब , स्वर्ग का क्या है मतलब , माँ की गोद में हासिल है ये सब ।
ऐ नींद बाक़ी की ज़िंदगी मैं सो कर काटने को हूँ तैय्यार , बस यही इलतजा है मेरी , बस एक बार , सिर्फ़ एक बार तू मुझे फिर से दिला दे माँ का वो प्यार , वो दुलार ।
बदक़िस्मती देखो , रोशनी की पहली किरण के आते ही मेरी आँख खुल गयी , माँ तू मुझे छोड़ कर है कहाँ चली गयी ?
मानता हूँ कि माँ के आशीर्वादों का और यादों का सहारा है मेरे पास , लेकिन मन नहीं भरता , सिर्फ़ एक बार माँ से दोबारा मिलने को मन है तड़पता , है तरसता !!
लेखक——निरेन कुमार सचदेवा।
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