
माँ शारदे, इक मधुर ‘वर-गीत’ दे दो!
रागिनी सज जाये मेरी, ऐसा संगीत दे दो!!
इक ‘गीत’ ऐसा कि जिसमें बस ‘देश’ की ही बात हो।
‘प्रेम’ का बहता पवन हो, समता का राग हो।
शिक्षा का पराग बरसे, ज्ञान का झूमे बसन्त…
आमन्त्रण हो नव्यता का, रूढ़ियों का अन्त कर दो!
मांँ शारदे, इक मधुर……
फिर से आर्यावर्त में वेद की गूँजे ऋचाएंँ।
‘चाणक्य’ विद्यापीठ के, भारत के प्रहरी कहाएंँ।
प्राचीन-भाव-भूमि-संस्कृति- पुनर्चरित्र-निर्माण कर दो।
अपाला,घोषा,’बालिका’ हों; ‘बालक’ चन्द्रगुप्त कर दो!
माँ शारदे, वर-गीत दे दो……
फिर से मेरे देश में ‘सत्य’ का अवतार हो।
त्याग की गूँजे कथाएँ, ‘सदग्रन्थों’ का पाठ हो।
दृढ़ रहें कर्तव्य पथ पर,’गीता’ की प्रेरणा से-
हर ‘बालक’, ‘बीर’ में, देश का सम्मान भर दो!
माँ शारदे, इक मधुर….
सत्य, अहिंसा, अस्तेय, जहाँ अविचल नियम हो।
ब्रह्मचर्य, अपरिग्रह, जहाँ पर आत्मबल हो।
प्रकृति का पालन करें हम, अपसंस्कृति से दूर हो;
मेरे ‘जन-मन-गीत’ में, वैसा उज्ज्वल भाव भर दो!!
माँ शारदे, इक मधुर…..
….🖊️बृजेश आनन्द राय,