गली-गली ढूढ़ रही,
बावरी सी भूल रही,
मन जैसा कहीं कुछ,
याद न दिलाइए ।
सुध-बुध खोय रही,
बड़ी भली होय रही,
बिखरे हुए बाल हैं,
लटें न सवारिए।
हँस-हँस रोय रही,
यादें कुछ बोय रही,
हास-परिहास सुख,
सखि न जगाइए।
प्रीति नहीं जानती है,
बात नहीं मानती है,
मुग्धा नायिका की गति,
कोई नहीं जानिए।
आनन्द राय, जौनपुर