मेरे मौला, दिवाली सब की जगमग हो-“निरेन कुमार सचदेवा”

बहुत बार मेरे दिल में आता है ये सवाल , फिर गमगीन सा हो जाता हूँ , हृदय में मच जाता है एक बवाल ।
क्या सब का खुदा एक है , क्या सब की जिंदगियों में होती है दिवाली ??
कभी उनके दिलों में भी झाँक कर देखो जिनकी हैं जेबें ख़ाली !!
उन लाचारों के लिए ना इस दिवाली में कोई मस्ती है , ना है ये दिवाली निराली ।
दिवाली के अवसर पर भी कई घरों में रोशनी
नहीं होती, ये रात भी होती है और रातों की तरह काली ।
वो क्या पठाखे चलाएँगे जिनके मुँह में निवाला तक नहीं है , हे ईश्वर तू रचेता है , मालिक है , तू ही बता , क्या से सब सही है ?
क्या से सब जायज़ है , कहीं ख़ुशियाँ ही ख़ुशियाँ , कहीं परेशनियाँ ही परेशनियाँ , कहीं अमीरी ही अमीरी, कहीं फ़क़ीरी ही फ़क़ीरी ?
कहीं मौज मस्ती , ख़ुमारी , कहीं बेबसी , बेकारी और लाचारी ।
क्यूँ हैं जिंदगानियों में इतना फ़र्क़ , कहीं हैं जन्नत , तो कहीं हैं नर्क ।
यारों मैं दुआ करता हूँ कि आप की दिवाली ख़ुशियों से हो भरपूर , लेकिन उन बाशिंदों को ना भूलना जो हैं ग़रीब और मजबूर ।
अह काश ए मौला , इन्सानों की जिंदगानियों में इतना अंतर ना होता , पैसे का जिंदगानियों में इतना असर ना होता , पैसा ना होने पर ऐसा ग़दर ना होता , ऐसा क़हर ना होता ।
कम से कम हम इतना तो कर सकते हैं, इस दिवाली के पर्व पर हम इन ग़रीबों से मिट्टी के कुछ दीये ख़रीद सकते हैं , इन दीयों में छिपी हुईं हैं इनकी ख़्वाहिशें ,आशाएँ , इच्छाएँ ।
शायद इनके दीये बिक जाएँ तो इनके भी “अच्छे दिन “ आ जाएँ ।
और मेहेरबानो , आप जब भी इन ग़रीब लोगों से मिलें तो मिलें मुस्कुरा कर , मिलें विवेक से , प्रेम से , प्यार से , क्या आप सहमत हैं मेरे इस विचार से ?
अगर आपका जवाब हाँ हैं, तो मैं सोचूँगा कि ये चंद शब्द लिखने का मेरा सफल हुआ प्रयास ।
इन लाचारों की ज़िंदगी में भी ख़ुशियाँ आनी चाहिएँ , इनको भी होना चाहिए मस्ती का अहसास ।
लेखक——निरेन कुमार सचदेवा।
Happy 😃 Diwali 🪔 to all in advance.

Comments

No comments yet. Why don’t you start the discussion?

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *