
होठों पे न जबतक हां आये
ये जान रहे या के जाये।
मैं राह तकूंगा अनवरत,
दिल बेकरार कर लूंगा।
मैं इंतजार कर लूंगा-2
माना कि दुख ने घेरा है,
अब चारों ओर अंधेरा है।
नियति मेरी संघर्षरत,
सब पर विचार कर लूंगा।
मैं इंतजार कर लूंगा-2
बन दृढ़ प्रतिज्ञ पाने चला,
बिछड़े हुए को लाने चला।
अब हो गया हूँ मैं कर्मरत,
बाधा को पार कर लूंगा।
मैं इंतजार कर लूंगा-2
गर चाह में मेरी होगी आग,
आयेगी तूं दौड़ी भाग-भाग।
सबकुछ लुटाके ये लिया है व्रत,
तुझको स्वीकार कर लूंगा।
मैं इंतजार कर लूंगा-2
इस प्रीत ने मुझे सिखाया है,
समदर्शी मुझे बनाया है।
मुझको लगी है तेरी हीं लत,
सम्यक् व्यवहार कर लूंगा।
मैं इंतजार कर लूंगा-2
—-प्रीतम कुमार झा
महुआ, वैशाली, बिहार ।
अन्तर्राष्ट्रीय कवि,गीतकार सह शिक्षक।
Waah waah umda 👌👌✍️✍️