मैं, मैं ना रहा-“डॉ विकास शर्मा”

मैं, मैं ना रहा
उनसे मिलने के बाद
खुद को भूल गया
बस रही वो ही याद…….

फटी पड़ी थी झोली
और मैं कर रहा था
चांद की फरियाद
पलकों पर अपनी
पालने लगा था ख्वाब
भूलकर अपनी औकात
अचानक से टूट गयी उम्मीद
हो नहीं सका मैं आबाद
खुद को भूल गया
बस रही वो ही याद…….

दोष उसका नहीं
वो देना चाहती थी
मुझे खुशियों की सौगात
पर मैं फूटी किस्मत वाला
लिखवा कर लाया हूँ
आंसुओं की बरसात
कितना बड़ा अभागा हूँ मैं
अपने हाथों ही हो गया बर्बाद
खुद को भूल गया
बस रही वो ही याद…….

“विकास” तोड़ जाएगा
साँसों की ये डोर
पकड़ेगा नहीं वो प्रभात
दिल ओ दिमाग में
उसके घूम रही है
बस वो ही इक बात
लांघ गया वो आज
अपनी सारी मर्याद
खुद को भूल गया
बस रही वो ही याद…….

©® डॉ विकास शर्मा

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