यह मत है न कोई ढेला है-संतोष श्रीवास्तव “सम”

चलो मनाये एक पर्व,
जो चुनाव कहलाता है,
जनता राज करती जहाँ,
वहीं लोकतंत्र लहराता है।

जवाब अधिकार से मांगोगे,
जो सत्ता में बैठालोगे,
वादे याद दिलाओगे,
जो अपना मत दे आओगे।

मत का अपने उपयोग करो,
न मत खाली जाने दो,
बटन दबाओ जो भी तुम,
सोच समझ से दब जाने दो।

पर ठहरो यह भी सुन तो लो,
यह मत कोई सस्ता न है,
चंद रुपयों में बिक जाये,
ऐसा यह कोई जस्ता न है।

यह मत तो है सोना हीरा,
जवहरियों को मालूम यह है,
इक बार हाथ जो आ जाये,
बदल देती पतलूम यह है।

लाख काम भी आ जाये,
मत देने निकल ही जाना तुम,
जो सत्ता फिर आफत लाये,
फिर आगे न पछताना तुम।

यह लोकतंत्र का पर्व है,
परिवर्तन की बेला है,
सोच समझ कर मत देना,
यह मत है न कोई ढेला है।

संतोष श्रीवास्तव “सम”
कांकेर

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