राम-नाम की खीर अनन्य।
खा नर भर-भर, हो जा धन्य।।
चले निरंतर अजपा जाप।
नाम राम-सा सरल न अन्य।।
राम-नाम से कटता फंद।
कटें जन्म के पाप जघन्य।।
पावन करे राम का नाम।
छूटें मलिन वृत्तियाँ वन्य।।
नाम-यज्ञ में ताम न झाम।
मात्र समुमिरनी है अनुमन्य।।
—-डाॅ०अनिल गहलौत