
वर दे वरदायिनी
वर दे
कि मिट जाये तम उर के।
तू राग दे मधुर कि
मधुर गीत गा
हम पीर हरें जगत् की।
वर दे तू वर दे
कि उपजे न भेद हममें
उठे न कलुष भाव उर में
वैर न करें हम किसी से
प्रीति करें सभी से।
वर दे कि
हमारा मन रहे विमल
वचन रहे मधुर
जीयें सरल जीवन ।
तू वर दे कि
नव प्रकाश पा तुझसे
करें हम लोकमंगल।
धर्मदेव सिंह
प. बंगाल