शंका-“लघुकथा”

जयकी आंखें गुस्सेसे लाल – पीली हो गई थी। जबसे उसने सीमा के बारेमें इधर-उधरकी बातें सुनी थी, तबसे उसका मन लगातार अशांत बना हुआ था। उसे ऐसा महसूस हो रहा था जैसे उसके साथ विश्वासघात हुआ हो।

सीमा जयकी इस परिस्थिति एवं उसके मनमें उठ रहे विभिन्न प्रकारके भावोंसे अनजान थी।

धीरे धीरे जब जयने उसके साथ बातचीत करना कम किया तब उसे इस बातका अंदेशा हुआ कि जय उससे कुछ नाराज है। वह पूछती भी थी कि – जय! कुछ नाराज और गुमसुम लग रहे हो, क्या बात है ? कुछ तो कहो। लेकिन जय किसी भी तरहका जवाब देनेके बजाय अपना मुंह बिगाड देता और दूसरी तरफ मुंह फेर लेता।

जयका एकाध महीने पहले ही दूसरे शहर से इस शहर में ट्रांसफर हुआ था और वह अपने आस-पासके लोगोंसे भी अपरिचित ही था। वह सुबह नौ बजेके करीब निकलता तो सीधे रात के सात -आठ बजे ही घर लौटता था।

पिछले दो – तीन दिनोंसे आसपासके लोगोंसे उसे जो कुछ भी सुनाई पड़ रहा था उससे वह हतप्रभ एवं चिंतित हो गया था। वह यह सोचने लगा कि पिछले दो दिनों से उसके टिफिन में जो तरह तरहकी चीजें जैसे शुद्ध घी से सराबोर हलवा, लड्डू आदि जो रखे जा रहे हैं, वह कहीं उसे खुश रखनेकी सीमाकी कोई चाल तो नहीं है ना। उसके भीतर शंकाके जिस कीड़ेने अपना घर बना लिया था, वह उसे किसी भी तरहसे शांत रहने नहीं दे रहा था।

आज जब वह घरसे टिफिन लेकर निकला तब ही उसने निश्चित कर लिया था सीमाको रंगे हाथ पकड़नेके बाद ही अब तो दूसरी बात की जाएगी।

घर से निकलनेके बाद सोसायटीके बाहर वह छिपकर एक जगह इस तरह खड़े हो गया कि सीमा की नजर उस पर न पड़े। थोडी ही देर में उसने देखा कि सीमा घरसे निकलकर खुले मैदानकी तरफ जा रही है। उसने इस समय घरेलु गाउन नहीं अपितु साडी पहन रखी थी। उसका गुस्सा सातवें आसमान पर चढ़ गया। वह भी छुपते – छुपाते और इस तरह कि सीमा को पता न चले, उसके पीछे हो लिया।

सीमाने सोसायटीके बोरवेल हेतु बनाए गए छोटे रूम को खोला और जैसे ही वह उसके अंदर गई, ये मन ही मन में बोल पड़ा – छी! है इसे थोड़ी भी लाज – शरम?

जैसे ही वह उस छोटे से रूम की देहरी पर चढ़ा, अंदर का दृश्य देखकर वह अचंभित हो गया।

उसे देखकर रूम के अंदर से उठी भूकने के तेज आवाज सुनकर वह डर से कांप गया।

वास्तविक स्थिति जानकर उसे अपने ऊपर ही क्रोध आया और वह आंखें नीचीकर वहीं जडवत खड़े रह गया।

मूल गुजराती लेखक :
श्री माणेकलाल पटेल
अहमदाबाद
(गुजरात)

मोबाइल नंबर
7567664554

हिन्दी अनुवाद :
राजेन्द्र ओझा,
रायपुर ( छत्तीसगढ़ )

Comments

No comments yet. Why don’t you start the discussion?

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *