शरद पूर्णिमा-“सुविधा पंडित”

ताटंक छन्द आधारित गीत

पूर्ण चंद्र की शीतलता ने, जग मधुरिम कर डाला है।
आज चाँद अपनी सोलह ही, कला लिये मतवाला है।
रोग -शोक से थके हुओं को, शशि -आभा ने पाला है।
पूर्ण चंद्र की शीतलता ने, जग मधुरिम कर डाला है।

शरद -पूर्णिमा जगमग करती, हर निदाघ ही हारा है।
धवल -चंद्रिका से धरती पर, नेह भरा उजियारा है।
शशि की किरणेँ बरसाती जो, मधु – रस अमरित वाला है।
पूर्ण चंद्र की शीतलता ने जग मधुरिम कर डाला है।

आज चकोरी मंत्र -मुग्ध है, देख चाँद मुस्काती है।
याद तुम्हारी मेरे मन में, भी हलचल कर जाती है।
सजल नयन अलकों के पीछे, प्रिय! तू ही रखवाला है।
पूर्ण चंद्र की शीतलता ने, जग मधुरिम कर डाला है।

यहाँ खेलते सभी रास हैं, नहीं मुझे कुछ भाता है।
कब होगा अब मिलन हमारा, पावन -सा यह नाता है।
स्नेह -समर्पण करती तुमको, मन भावों का प्याला है।
पूर्ण चंद्र की शीतलता ने जग मधुरिम कर डाला है।

आज सुधा -सम हुई चाँदनी, तन छूकर जब जाती है ।
प्रिय के प्रथम छुअन की स्मृति भी,अनल सरिस दहकाती है ।
सिहर उठे यह कंचन काया, उर के भीतर ज्वाला है।
पूर्ण चंद्र की शीतलता ने, जग मधुरिम कर डाला है।

यौवन का यह पुष्प खिला है, अरु चंदा की छाया है।
कलिका -सा मतवाला था मन, तुमने ही महकाया है।
निज को निज से ही मादकता, तरुणाई मधुशाला है।
पूर्ण चंद्र की शीतलता ने, जग मधुरिम कर डाला है।

     सुविधा पंडित

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