डमरू बजाए शिव, अंग भस्म रमाए।
वो डमरू वाला, है बड़ा ही मतवाला।
वो कैलाशी, वो अविनाशी,
पहने सर्पों की माला।।
मुंड माल पहने गले में, बाघंबर धारी।
अर्धचंद्र शीश पे सोहे,
चंद्रशेखर नाम धराता।।
जटा से जिसके प्रगटी गंगा,
सवारी बूढा़ नंदा।
भोला- भाला बाबा मेरा,
झट प्रसन्न हो जाता।
गरल गले में धरता,
नीलकंठ कहाता।
बड़ा ही दानी, बडा ही ज्ञानी।
सारे जग का है रखवाला। ।
पिए भंग का प्याला बाबा।
राम का ध्यान लगाता।
रहता मस्त सदा ही।
महिमा उसकी कही न जाए।
अद्भुत छवि मतवाली।
मन इच्छा पूरी करता, वोभोला भंडारी।।
चंद्रकला भरतिया
नागपुर महाराष्ट्र