समांत — आस / पदांत — है
मात्राभार — १६
झूठ हँस रहा सच उदास है।
धूर्त तिमिर का अट्टहास है।।
किरणों पर कालिमा विलसती।
बुझा-बुझा मन का उजास है।।
बिना स्वार्थ के कौन पूछता?
कौन किसे डालता घास है??
निरे भेड़िए, गिरगिट, तोते।
संसद में इनका निवास है।।
जनाधार खोलेगा आँखें।
करते ही रहना प्रयास है।।
—डाॅ०अनिल गहलौत