
किसी ने लिखा की नादान से भी दोस्ती कीजिए जनाब , मुसीबत के वक़्त कोई भी समझदार साथ नहीं देता ।
मानता हूँ मैं इस बात को , कोई थोड़ा नासमझ ही बुरे वक़्त में काम आता है , कोई समझदार ऐसे वक़्त पर अपना हाथ नहीं देता।
कश्मकश में हूँ , असमंजस में हूँ कि आख़िर हम लोग आख़िर किसी को नादान होने का कैसे दे देते हैं ख़िताब , है किसी समझदार के पास इस सवाल का जवाब ?
ये नाम क्या किसी अदालत से आया है या फिर कोई बेफ़िज़ूल तोहमत से आया है ?
यक़ीनन माँ बाप ने तो ये नाम नहीं रखा होगा किसी बच्चे के पैदा होने पर तो , पैदा होने पर तो वो एक भोला भाला इंसान होगा , इस दुनिया के बेग़ैरत तौर तरीक़ों से अनजान होगा ।
क्या नादान और नासमझ हो गया वो इस ज़ालिम दुनिया के थपेड़े खा खा कर , शायद बहुत शातिर नहीं था इसीलिए वो नहीं रख पाया अपना ख़याल , इसीलिए तो आज है उसका हाल बेहाल ।
आख़िरकार समझदार कौन है , जिसके पास रूतबा है , पैसा है , हैसियत है , आजकल की दुनिया में ये ख़िताब उसी को मिलता है जो कि ऐसा है , जो है ख़ुदगर्ज़ , मौक़ापरस्त , है चतुर और चालाक !
ऐसे बुद्धिमान और समझदार इंसान से तो वो नादान ही बेहतर हैं , वो लालची नहीं हैं , अहसान फरामोश नहीं हैं , इन अहसासों से अछूते हैं , हैं पवित्र और पाक ।
ये समझदार लोग , अपने आप को राजा समझने लगते हैं ,और आपको बना देंगे एक वज़ीर ।
आप का विश्वास जीत लेंगे , आप को अपने क़ाबू में कर लेंगे , ख़रीद लेंगे आपका जिस्म और ज़मीर ।
जब तक इनको आप से कुछ फ़ायदा होगा , तब तक आप से करेंगे मीठी और मधुर बात।
और जिस दिन इनको आप की ज़रूरत नहीं होगी , उस दिन आपको दूध में से मक्खी की तरह बाहर निकाल फेंकेंगे , तब क्या होंगे आपके हालात ?
क्या बताऊँ , मैं ख़ुद ही थोड़ा नादान और नासमझ हूँ , क्यूंकि मैं नहीं समझ पाया इस आधुनिक दुनिया की कुनीतियाँ , बेईमानियाँ।
फिर भी मैं ख़ुश हूँ अपनी छोटी सी दुनिया में , किसी का हक़ नहीं मारता , किसी का हौंसला बढ़ाता हूँ , करता हूँ ये छोटी छोटी नादानियाँ ।
नहीं देखीं जाती मुझ से किसी के चेहरे पर दुःख दर्द की लकीरें , बाँट सकूँ तो बाँट लेता हूँ उनकी परेशानियाँ ।
समाज सेवा करता हूँ , समाज सुधार के क़िस्से सुनता हूँ , उन पर अमल करता हूँ , सुनता हूँ भावनात्मक कहानियाँ ।
नादान हूँ इसीलिए कुछ नेक काम करता हूँ , करता हूँ दान पुण्य , समझदार लोगों के पास ऐसे कामों को करने की फ़ुर्सत नहीं , और हक़ीक़त ये है कि कुछ करने की नीयत नहीं।
या खुदा , हे ईश्वर तू मुझे रखना नादान, उतना ही मेरे लिए काफ़ी है जितना मेरे पास है ज्ञान ।
बस सचेत रखना मेरा ज़मीर, नादान हूँ इसीलिए सब से अदब ओ तहज़ीब से बात करता हूँ , कोई ग़रीब है या अमीर ।
कोई नंगे पाँव है , किसी के फटे कपड़े हैं, कोई फटफट इंग्लिश नहीं बोलता , मुझे कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता , सब को गले लगाने को मन है करता।
लेखक——-निरेन कुमार सचदेवा।
Wah ati sunder 👌👌✍️✍️🙂🙂