सोन पापड़ी-“मधु वशिष्ठ”

मिठाइयों की रानी सोन पापड़ी
देखो तो उपेक्षित हो दूर है पड़ी।

सबको प्यारी लगती थी।
त्योहारों पर मन से बिकती थी।
चॉकलेट को भी टक्कर देती थी।
मिठाइयों में सबसे ज्यादा इसकी मांग थी।

हर घर में मिल जाती थी।
सबके बजट में आ जाती थी।
खराब होने का डर नहीं था।
पसंद वह सबको आती थी।

पैक्ड डिब्बे में सोन पापड़ी मिलती थी।
बिस्कुट चॉकलेट से भी ज्यादा सोन पापड़ी ही बिकती थी।

फिर उसके साथ राजनीति हुई।
चॉकलेट बिस्कुट के बढ़ गए विज्ञापन।
वह पीछे ही छूट गई।
स्वाद उसका भले ही अच्छा था
लेकिन इसका एक भी विज्ञापन न था।

गंवारों कि वह श्रेणी में आई।
मजाकिया मीम्स बनने लगे उसके भाई।
चॉकलेट बिस्किट जैम जैली यह तो अमीरों की श्रेणी में आए।
बेचारी सोन पापड़ी तो गरीबी रेखा के भी नीचे आई।

ज्यों ज्यों सोन पापड़ी के मजाक बनने लगे।
चॉकलेट बिस्कुट के डिब्बे उतने ही बिकने लगे।
सोन पापड़ी को सब ने ठुकराया।
जिसने भी खरीदा उसका मजाक था बनाया।

लोग समझ नहीं पाते यह विज्ञापन का युग है।
वरना स्वाद आज भी सोनपापड़ी में खूब है।
अगर देश को करते हो प्यार
तो सोन पापड़ी से ना करना इनकार।
इस दीपावली सोन पापड़ी से ही करना एक दूसरे का स्वागत सत्कार।

मधु वशिष्ठ फरीदाबाद हरियाणा

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