हसरत-“रजनी प्रभा”

है हसरत मैं खेलूं होली कभी
हो गुलाल तेरे और गाल मेरे।

सबसे छुप_छुप कर आया करना
तुम घर बालम हर साल मेरे।

खुद की सुध_बुध खो बैठे
हो प्रीत तेरी मोह जाल मेरे।

रंग में अपने ऐसे रंगना मुझको
के हो जाए अधर निहाल मेरे।

फिर बन जाना पूर्ण अभिव्यक्ति तुम
जब कोरे नैना करे सवाल मेरे।

रजनी प्रभा

1 Comment

  1. Kuldeep Singh

    बहुत ही सुंदर भाव आपंक्के

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