
आम से खास तक
सांस से सांस तक
भाव से भाव तक
कर्म से आस तक
नित्य जो प्यार से,दिखता अविराम है
हां वहीं राम है, हां वहीं राम है ।
हां वहीं राम है, हां वहीं राम है
भाई को भाई से
मन की अंगराई से
सच की सुनवाई से
दिल की गहराई से
जीतता खुद से हीं ,
एक संग्राम है।
हां वहीं राम है, हां वहीं राम है,
हां वहीं राम है ,हां वहीं राम है।
राम में राम है
राम है भी नहीं
उसको ढूंढू कहां
वो दिखे हर कहीं
दिव्यता से भरा
जो धरा धाम है ।
हां वहीं राम है,हां वहीं राम है ,
हां वहीं राम है, हां वहीं राम है।
भोर की है किरण
है वो खुद में मगन
कर्मयोगी है वो
है नियम का नियम
स्वार्थ से है परे
और निष्काम है
हां वहीं राम है,हां वहीं राम है।
हां वहीं राम है, हां वहीं राम है।
— प्रीतम कुमार झा
अंतरराष्ट्रीय कवि, गीतकार सह शिक्षक
महुआ, वैशाली, बिहार।
Waah waah behtarin 👌👌✍️✍️