किसी ने लिखा , ख़ामोशियाँ बेवजह नहीं होतीं , कुछ दर्द आवाज़ छीन लिया करते हैं , मैंने कुछ और पंक्तियाँ जोड़ी हैं-“निरेन कुमार सचदेवा”

ज़ख़्म कई तरह के होते हैं , लेकिन जुदाई के नामुराद ज़ख़्म ना जाने क्यूँ , हमेशा रिसते…