ग़ज़ल

ग़ज़ल

ये  दर्द  दिल में जगा न होता
अगर वो मुझसे ज़ुदा न होता।

जो यादें दिल में बसी न होती
तो पास कुछ भी बचा न होता।

भटकता  रहता  यहांँ वहांँ  मैं
जो हाथ तुमसे मिला न होता।

न  साथ जुड़ता अगर ये  तुमसे
तो फूल दिल का खिला न होता।

मैं  रोक  लेता क़दम ये अपने
जो  हाथ  तेरा  बढ़ा  न  होता।

गुनाह   मुझसे   ज़रूर   होते
जो दिल में मेरे ख़ुदा न होता।

रजनी महफ़िल न झूम पाती
जो  शायरी  में  नशा  न  होता।

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