एक नगर में एक वैश्या रहती थी। उसी नगर में पुजारी जी भी रहते थे। वह महिला जब भी अपने काम पर निकलती, दो मिनट के लिए रुक कर भगवान के मंदिर की सीढ़ियों पर मत्था टेकती और प्रार्थना कर आगे बढ़ जाती, क्योंकि उसे मंदिर में जाने की अनुमति प्राप्त न थी। पुजारी जी के साथ _साथ सभी नगरवासी उसे घृणा की दृष्टि से देखते।समय ने ऐसी चाल चली कि उस वेश्या और पुजारी जी की मौत एक ही दिन हुई। पुजारी जी की अर्थी को फूलों से सजा, नगर भर में घुमाया गया, कि लोगों को ऐसे ही काम करना चाहिए जैसा पुजारी जी ने किया था और गंगा किनारे उनका अंतिम संस्कार किया गया। वहीं उस वैश्या के मृत शरीर को म्यूंसपैलटी के कचरे वाले नाले में फेंक दिया गया,ताकि लोगों को यह संदेश मिले कि बुरे काम का नतीजा बुरा ही होता है।
दोनों यमराज के पास पहुंचे।पुजारी जी को नर्क और वेश्या को स्वर्ग दिया गया। इस पर पुजारी जी ने यमराज से कहा_ ’यह अन्याय है।मैंने जीवन भर आपकी सेवा की फिर मुझे नर्क और इसने तो कभी आपके दर्शन तक नहीं किए इसे स्वर्ग क्यों?
यमराज ने कहा_’तुमने भले ही सारी उमर मंदिर में बिताए परंतु उसमें तुम्हारा स्वार्थ निहित था।तुमने धन और पद के लिए मंदिर में समय दिया। तुमने क्षण भर भी कभी मुझे हृदय से याद नहीं किया।इस वैश्या ने मजबूरी से वेश्यावृत्ति की थी,परंतु दो मिनट के लिए ही सही यह रोज मुझे सुनकर अपने किए का पश्चाताप और मोक्ष की कामना करती थी। और अपने द्वारा कमाए पैसों को उसी मंदिर में दान कर आती थी।जिसे तुम ही सहेज कर रखते थे।अब तुम्ही बताओ स्वर्ग किसे और नरक किसे मिलना चाहिए?”पुजारी जी चुपचाप नरक की ओर चल देते हैं।

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