सिसकियों में बंध गई हर खुशी मेरी,
खनकती,छनाछना रही ये मयकसी तेरी।
दूर होके भी तू पास है साए सा,
महफूज़ रहेगा तू,असर होगी बंदगी मेरी।
रूठ जाऊं अगर तो सितम होगा तुझपे,
इसीलिए सजती है हरदम होठों पे हंसी मेरी।
अब इस कदर रूह में उतर गया दर्द,
मौत भी नहीं मांगती ये जिंदगी मेरी।
अर्श पे दुआ ’रजनी’ की बेअसर हो गई,
न डाला खुदा ने दामन में तुझे अबकी मेरी।
रजनी प्रभा